अब मैं थक गया हूँ।
1931 से अब तक 81 साल से देख रहा हूँ यह सब .
अंग्रेजों ने बनाया था मुझे शहीद फौजीओं की याद मैं . आज भी फ़ौज तैनात है मेरी शान मे .
कभी बेटियों को जलते देखता हूँ और उनकी याद मैं जलने वाली मोमबत्तियां मेरी आँखें नम कर देती हैं
कभी किसी मजलूम की इज्ज़त लुटने पर बेबस दिल्ली को देखता हूँ
कभी भ्रस्टाचार के पीड़ित जनता का सैलाब मेरे बगीचों मैं लेहलहाता है .
अब तो यह लगने लगा है , कि मेरा वजूद सिर्फ उस बरगद की तरह है , जिसके सामने हुक्मरानों के महल हैं , बस्तियां हैं , अदालत है, सिपहसलार हैं .दूर खड़ी यह सारी इमारतें मेरा और मेरे आस पास खड़े मजबूर , बेसहारा , लाचार हिन्दुस्तानियों का मजाक उड़ा रहीं हैं
जाओ बाबा , आराम करों . लोग आएंगे मोमबत्तियां जलाएंगे , हल्ला मचाएंगे , डंडे खायेंगे चले जायेंगे .
कभी सोचता हूँ , मेरे नीचे यह जो अमर जवान सो रहे हैं इन्ही को जगाना पड़ेगा . इन्ही से उम्मीद है . इन्ही की कुर्बानियां हैं जो यह देश आज भारत है। वरना इन महलो मैं रहने वालों ने पहले भी नोचा था अंग्रेजों के तरह और भी नोच रहे हैं हिन्दुस्तानियों के भेस मैं .
मेरे सिपाहियों अब तुम ही उठो , अपने देश वासियों का साथ देने के लिए।
मैं अकेला थक गया हूँ , यह नज़ारा देख देख कर। कब तक मैं बरगद के तरह अपनी छाया के नीचे बेबस खड़ा रहूँगा।
बरगद को सहारा चाहिए . अपने जवानो का , वर्दी का . अपनों को बचाना है मुझे अपने हुक्मरानों से , अपनों के बिना यह काम मुमकिन नहीं .